Devi Kali Aur Raktbeej Yuddha Katha | देवी काली और रक्तबीज का विनाश | एक असुर, जिसकी हार नामुमकिन थी
तीसरा अध्याय: रक्तबीज का रहस्य
घनघोर अंधकार, गगन में दानवों के क्रूर अट्टहास और ध्वंस का माहौल चारों ओर फैला हुआ था। देवी अम्बिका और चामुंडा के असाधारण पराक्रम ने शुंभ-निशुंभ के कई असुरों का विनाश कर दिया था, लेकिन अब शुंभ-निशुंभ ने अपने सबसे खतरनाक दूत को भेजने की योजना बनाई। उस दानव का नाम था – रक्तबीज। देवी की शक्तियों ने चंड-मुंड का वध किया था, लेकिन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ था। युद्ध का अंत तभी हो सकता था जब सभी देवताओं की स्त्री शक्तियां मिलकर रक्तबीज का सामना करें।
दृश्य 1: रक्तबीज का आगमन
पहाड़ की चोटियों पर चारों ओर धुंधलका छाया हुआ था। आकाश में दानवों के काल्पनिक परछाई दिखाई दे रही थीं, और इस धुंध में कहीं से भारी कदमों की आवाजें सुनाई दीं। अचानक, रक्तबीज अपने विशालकाय शरीर और क्रूर चेहरे के साथ प्रकट हुआ। उसके कदमों से धरती हिल उठी, उसकी आंखों में आग भरी हुई थी और उसके चेहरे पर अहंकार झलक रहा था।
दृश्य 2: देवी अम्बिका का युद्ध की तैयारी
महर्षि मेधा की कथा सुनते हुए राजा सुरथ और समाधि वैश्य की आंखों में कौतुहल और भय का मिश्रण था। महर्षि ने कहा, "रक्तबीज जैसा असुर अपनी ही रक्त बूंदों से नए दानव पैदा करता था। जितनी बार उसे मारा जाता, उतने अधिक दानव पैदा हो जाते।" यह सुनकर राजा सुरथ ने पूछा, "तो फिर आप ने उसका अंत कैसे किया?"
इसी समय, दृश्य देवी अम्बिका की ओर जाता है, जहां वह शांति से ध्यान में बैठी होती हैं। लेकिन उनकी तीसरी आंख से क्रोध की ज्वाला स्पष्ट होती है। उन्होंने महसूस किया कि रक्तबीज की चुनौती किसी साधारण योद्धा के लिए नहीं थी।
दृश्य 3: रक्तबीज का सामना
देवी अम्बिका युद्ध भूमि में कदम रखती हैं। उनका आभामंडल और उनकी दिव्यता चारों ओर फैली हुई है। रक्तबीज के कदमों की आवाज सुनाई देती है, और अचानक वह सामने आ खड़ा होता है। उसका कद इतना बड़ा होता है कि आसमान में उसका सिर पहुंचता है। उसके शरीर पर राक्षसी कवच चमक रहा होता है, और उसके हाथ में एक विशाल मूसल होता है।
रक्तबीज गर्व से हंसते हुए कहता है, "तुम मुझे मारने आई हो? मुझे मारा नहीं जा सकता। मेरा रक्त ही मेरे जीवन का आधार है। तुम्हारी हर कोशिश मुझे और शक्तिशाली बनाएगी।"
दृश्य 4: देवी चामुंडा का प्रकट होना
देवी अम्बिका ने रक्तबीज के अहंकार को देखा और अपनी माया से देवी चामुंडा को पुकारा। देवी चामुंडा युद्ध के लिए तैयार हो गईं। उनकी आंखों में एक उग्र ज्वाला थी। वह हर बूंद को निगलने की योजना बना रही थीं। युद्ध की देवी के रूप में, उन्होंने अपनी योगिनी सेना को तैयार किया।
दृश्य 5: युद्ध का आरंभ
रक्तबीज ने पहला प्रहार किया, और देवी ने उसे अपनी ढाल से रोका। देवी चामुंडा अपने त्रिशूल से रक्तबीज पर वार करती हैं, लेकिन उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की बूंदें नए दानवों को जन्म देती हैं। एक रक्तबीज से दस और, फिर बीस। यह देखकर युद्ध का मैदान असुरों से भर गया।
दृश्य 6: माँ काली का प्रकट होना
देवी अम्बिका ने महसूस किया कि रक्तबीज को मारने का यह तरीका काम नहीं करेगा। तब उन्होंने अपनी तीसरी आंख से क्रोध की अग्नि प्रकट की, और माँ काली को बुलाया। माँ काली प्रकट होती हैं, उनके हाथ में खप्पर होता है और उनकी जिव्हा धरती तक फैली होती है। उन्होंने योजना बनाई कि रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही अपनी जिव्हा से सोख लेंगी।
दृश्य 7: रक्तबीज का अंत
माँ काली ने जैसे ही रक्तबीज पर आक्रमण किया, उन्होंने हर बूंद को अपनी जिव्हा पर समेटना शुरू किया। रक्त की एक भी बूंद धरती पर नहीं गिरी। रक्तबीज कमजोर हो गया, उसकी शक्ति क्षीण हो गई और अंततः देवी ने उसका संहार कर दिया। रक्तबीज का विनाश हुआ और सभी देवताओं ने विजय का जयघोष किया।
दृश्य 8: अंत में रहस्य
जैसे ही रक्तबीज का अंत होता है, देवी अम्बिका और चामुंडा शांत हो जाती हैं, लेकिन देवी काली के भीतर क्रोध अभी भी प्रकट होता है। देवी के चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान होती है, जैसे कि वह आने वाले किसी और संकट को पहले से देख रही हों। युद्ध के बाद का माहौल भले ही शांत हो, लेकिन देवी की आँखों में कुछ और बड़ा संकट छिपा हुआ है।
अगले अध्याय का संकेत
कहानी के अंत में, देवी की रहस्यमयी मुस्कान और उनके चेहरे पर छिपा हुआ रहस्य अगले अध्याय की शुरुआत के संकेत देता है। दर्शक यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि अगले युद्ध में कौन सा नया असुर प्रकट होगा।
Post a Comment