Mahakali - Shumbh Nishumbh War Story | महाकाली - शुंम्भ निशुंम्भ युद्ध कथा | #dasara #mahakali

महाकाली का रहस्यमयी युद्ध: अंतिम अध्याय

आकाश काले बादलों से घिरा हुआ था, और धरती पर घना अंधकार छा चुका था। चारों ओर मृत्यु का सन्नाटा था। शुम्भ और निशुम्भ, ये दो महाबली असुर, अपनी अपार शक्ति और अहंकार के बल पर पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचा रहे थे। स्वर्ग लोक पर अधिकार कर वे देवताओं को अपमानित कर चुके थे। अब उनका अगला लक्ष्य पृथ्वी और सृष्टि का विनाश था।

देवताओं के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, वे सभी अपनी पराजय और अपमान के बोझ तले झुके हुए थे। सभी ने मिलकर माँ महाकाली की आराधना शुरू की, "हे महाशक्ति! हमारी रक्षा करो। इस संकट से हमें मुक्त करो।" देवताओं की ये पुकार पूरे ब्रह्मांड में गूंजने लगी, और तभी आकाश में एक अद्भुत प्रकाश दिखाई दिया। उस प्रकाश से प्रकट हुईं माँ महाकाली, अपने विकराल रूप में।

प्रकट होती माँ महाकाली

माँ महाकाली का यह स्वरूप अद्वितीय था—चार हाथों में शस्त्रों का धारण, लाल जिह्वा, और उनकी काली छटा से अंधकार भी भयभीत था। उनके पैरों के नीचे असुरों के सिर दबे हुए थे। देवी का रूप ऐसा था कि स्वयं देवता भी काँप उठे। उनकी गूंजती हुई आवाज ने आकाश को फाड़ दिया, "कहाँ हैं शुम्भ और निशुम्भ? उन्हें मेरी शक्ति का सामना करना है।"

देवताओं ने माँ महाकाली से निवेदन किया, "हे देवी! वे अत्यंत शक्तिशाली हैं और स्वर्ग से हमें भगा चुके हैं। उनकी शक्ति असुरों के गुरु शुक्राचार्य के आशीर्वाद से अत्यधिक हो चुकी है।"

माँ महाकाली ने गंभीर स्वर में कहा, "मुझे किसी आशीर्वाद या शक्ति की चिंता नहीं। अधर्म का अंत अवश्य होगा।"


निशुम्भ का प्रचंड हमला

माँ महाकाली के प्रकट होते ही, शुम्भ और निशुम्भ को भी देवी के आगमन की सूचना मिली। निशुम्भ ने क्रोध में कहा, "कौन है यह स्त्री जो हमारे साम्राज्य को चुनौती दे रही है? मैं उसे युद्ध में परास्त कर दूँगा।"

अपने विशाल असुर सैनिकों के साथ निशुम्भ युद्ध के लिए प्रस्थान कर गया। युद्ध का आरंभ होते ही निशुम्भ ने अपना बल और कौशल दिखाते हुए आकाश में अपने शस्त्रों की वर्षा की। ऐसा लगा जैसे पूरी धरती पर विनाश का बादल मंडराने वाला है। लेकिन माँ महाकाली अडिग थीं। वह सिंह पर सवार होकर निशुम्भ के समक्ष आ खड़ी हुईं। उनकी उपस्थिति मात्र से ही निशुम्भ की सेना कांप उठी।

निशुम्भ ने देवी पर हमला किया, लेकिन हर बार उसका प्रहार विफल होता गया। माँ महाकाली ने अपने तलवार से असुरों का नाश करना शुरू कर दिया। एक-एक करके निशुम्भ के सारे सेनापति मारे गए। अंततः निशुम्भ स्वयं देवी के सामने आकर खड़ा हुआ।

देवी ने निशुम्भ को ललकारते हुए कहा, "तू कितना भी बलवान हो, तेरा अंत आज निश्चित है।" और फिर एक भीषण युद्ध छिड़ गया। देवी ने अपने त्रिशूल से निशुम्भ का अंत कर दिया। उसकी मृत्यु होते ही आकाश गूंज उठा। लेकिन देवी का विकराल रूप अभी भी शांत नहीं हुआ था।


शुम्भ का प्रतिशोध

निशुम्भ की मृत्यु का समाचार सुनते ही शुम्भ क्रोध से पागल हो गया। "तुमने मेरे भाई को मारा है, अब मैं तुम्हें इसका मूल्य चुकाऊंगा।" शुम्भ ने अपनी सारी शक्ति और सभी सैनिकों को इकट्ठा किया और माँ महाकाली पर प्रचंड आक्रमण करने निकल पड़ा।

उसका आगमन भयावह था। आकाश में बिजली कड़कने लगी, धरती कांपने लगी। शुम्भ ने माँ महाकाली पर अपनी सारी शक्ति झोंक दी। देवी के चारों ओर उसकी सेना ने घेरा डाल लिया, पर माँ महाकाली निर्भीक थीं। उन्होंने अपने त्रिशूल, तलवार, और खप्पर से असुरों का नाश करना शुरू किया।

एक-एक करके शुम्भ के सारे योद्धा धराशायी हो गए। शुम्भ ने अपने महा अस्त्रों से देवी पर भीषण प्रहार किए, लेकिन माँ महाकाली उन पर विजय प्राप्त करती रहीं। अंततः शुम्भ और माँ महाकाली का सीधा आमना-सामना हुआ। शुम्भ ने देवी से कहा, "तुम मुझे मार नहीं सकतीं, क्योंकि मेरे पास अमरता का वरदान है।"

माँ महाकाली ने मुस्कराते हुए कहा, "अधर्म का अंत निश्चित है, चाहे वह कितना भी अमर क्यों न हो।" और फिर देवी ने अपने त्रिशूल से शुम्भ का सीना चीर डाला। शुम्भ की गर्जना दूर तक गूंज उठी और वह धरती पर गिर पड़ा।


देवी का अनियंत्रित क्रोध

शुम्भ-निशुम्भ के अंत के बाद भी, माँ महाकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ। उनका विकराल रूप और भी भयंकर हो गया। उनकी आँखों से आग की लपटें निकल रही थीं और उनके पैरों के नीचे पूरी धरती कांप रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यदि अब उन्हें रोका न गया, तो पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी।

देवता भयभीत थे और उन्होंने माँ को शांत करने की प्रार्थना की, लेकिन देवी अनियंत्रित थीं। उनका क्रोध सभी दिशाओं में फैल रहा था। तब भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने देखा कि यदि माँ महाकाली का यह विकराल रूप शांत न हुआ, तो सृष्टि का अंत हो जाएगा।

भगवान शिव ने निर्णय लिया कि वे स्वयं माँ महाकाली के क्रोध को शांत करेंगे। उन्होंने अपनी महानता और प्रेम के साथ देवी के सामने लेटने का निर्णय लिया। जैसे ही माँ महाकाली का पैर भगवान शिव के शरीर को छूता है, उनके क्रोध की ज्वाला शांत हो जाती है। देवी अपने सामान्य स्वरूप में लौट आती हैं और चारों ओर शांति फैल जाती है।


आश्चर्यजनक अंत और रहस्य

देवताओं ने राहत की सांस ली और माँ महाकाली की स्तुति की। आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी, और सभी देवता माँ की जय-जयकार करने लगे। माँ महाकाली ने अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया और स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल को फिर से शुद्ध किया।

लेकिन तभी आकाश में अजीब सी गर्जना सुनाई देती है। अचानक से हवा में अंधकार फैलने लगता है। सभी देवता आश्चर्यचकित होते हैं। एक रहस्यमयी छाया आकाश में दिखाई देती है, जो शुम्भ-निशुम्भ की शक्ति से भी अधिक भयावह प्रतीत हो रही है।

देवताओं के चेहरे पर फिर से चिंता और भय फैल जाता है। क्या यह सच में अंत था, या एक नए संकट की शुरुआत? माँ महाकाली की आँखों में भी एक रहस्यमयी चमक दिखाई देती है, जो दर्शकों के मन में एक नए रहस्य की प्रतीक्षा छोड़ जाती है।


इस प्रकार शुम्भ और निशुम्भ का अंत हुआ, लेकिन यह संकेत मिला कि भविष्य में एक और बड़ा संकट आने वाला है। माँ महाकाली ने धरती को एक बार फिर से बचाया, लेकिन क्या यह वास्तव में अंतिम लड़ाई थी? या फिर कोई और शक्तिशाली असुर आने वाला है?


समाप्त

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