होशियार वृषभ | Hoshiyar Vrushabh Ki Kahani | Cartoon Tales || Hindi Kahani || Cartoon Story | Taurus
एक समय की बात है, एक शांत और हरे-भरे जंगल के किनारे एक छोटा सा गाँव था। उस गाँव के पास एक गहरी घाटी में एक विशाल पर्वत खड़ा था, जिसे लोग "होशियार पर्वत" कहते थे। इस पर्वत के बारे में कहा जाता था कि वह किसी भी साधारण व्यक्ति को मंज़िल तक नहीं पहुँचने देता। उसकी चोटी पर पहुँचने वाले को केवल वही पहुँच सकता था, जो सच्ची लगन और धैर्य से भरपूर हो।
गाँव के पास एक लड़का था, जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन बहुत साहसी और जिज्ञासु था। उसने हमेशा सुना था कि पर्वत की चोटी पर अद्वितीय खजाना है, जो किसी भी व्यक्ति को अमूल्य ज्ञान और शक्ति प्रदान करता है। उसने ठान लिया कि वह एक दिन उस खजाने तक अवश्य पहुँचेगा।
एक सुबह, अर्जुन ने पर्वत की ओर यात्रा शुरू की। रास्ता मुश्किल और कठिन था, लेकिन उसका हौसला कभी कम नहीं हुआ। जैसे-जैसे वह ऊपर चढ़ता गया, पेड़-पौधे पतले होते गए और ठंडी हवा चलने लगी।
अर्जुन को रास्ते में कई जानवर मिले, जो उसे अपनी-अपनी समस्याएँ बता रहे थे। पहले उसे एक उल्लू मिला, जिसने कहा, "तुम क्यों इतने मेहनत कर रहे हो? इस पर्वत पर कोई नहीं पहुँच सकता। तुम हार जाओगे।" अर्जुन मुस्कराया और बोला, "अगर मैं कोशिश नहीं करूंगा, तो कैसे जानूंगा कि मैं सफल हो सकता हूँ या नहीं?"
फिर उसे एक चालाक लोमड़ी मिली। उसने कहा, "अगर तुम मुझे सुनोगे, तो मैं तुम्हें छोटा रास्ता बता सकती हूँ। लेकिन इसके लिए तुम्हें मुझे अपना समय और ध्यान देना होगा।" अर्जुन ने थोड़ा सोचा, फिर कहा, "हर छोटी चीज़ की कीमत होती है। मैं मेहनत से अपना रास्ता खुद तय करूंगा।"
जैसे-जैसे वह और ऊपर चढ़ता गया, उसे ठंड और थकान महसूस होने लगी। लेकिन तभी उसे एक पुराना, गहरा और बुद्धिमान वृषभ मिला, जो वहीं आराम कर रहा था। वह वृषभ विशेष था। उसके सींग पर जादुई रोशनी चमक रही थी, जो हर दिशा में फैली हुई थी।
वृषभ ने अर्जुन को देखा और मुस्कराया। "कहाँ जा रहे हो, नौजवान?" उसने शांत आवाज़ में पूछा।
"मैं इस पर्वत की चोटी तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ," अर्जुन ने उत्तर दिया।
वृषभ हंसा और बोला, "तुम्हें पता है, इस पर्वत पर चढ़ने के लिए ताकत से ज्यादा होशियारी चाहिए। बहुत सारे लोग मुझसे पहले मिले हैं, लेकिन वे सब हार मान गए।"
अर्जुन ने पूछा, "होशियारी कैसे काम आती है? क्या आप मुझे सिखा सकते हैं?"
वृषभ ने आँखें बंद की और धीरे-धीरे बोला, "यह पहाड़ केवल उन लोगों को अपनी चोटी तक पहुँचने देता है, जो धैर्य, समझदारी और करुणा रखते हैं। तुम्हारी यात्रा कठिन होगी, लेकिन अगर तुम हर चुनौती को दिल से हल करोगे, तो मंज़िल तुम्हारी होगी।"
अर्जुन ने सिर हिलाया और अपनी यात्रा जारी रखी। आगे रास्ते में एक विशाल चट्टान आई, जो रास्ते को पूरी तरह से बंद कर रही थी। अर्जुन ने हर तरीके से उसे हटाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। तभी उसे वृषभ की बातें याद आईं। उसने सोचा, "क्या यह समय धैर्य और समझदारी से काम लेने का है?"
अर्जुन ने चारों ओर देखा और पाया कि चट्टान के पास ही एक पतली पगडंडी थी, जो चट्टान के चारों ओर जाती थी। वह चट्टान हटाने के बजाय उस पगडंडी पर चलने लगा। यह रास्ता लंबा था, लेकिन सुरक्षित था।
आखिरकार, वह पर्वत की चोटी के करीब पहुँचा। वहाँ उसे एक विशाल सुनहरी द्वार मिला, जो बंद था। द्वार पर लिखा था, "केवल वही प्रवेश कर सकता है, जो अपने मन और दिल को एक कर ले।"
अर्जुन को थोड़ी देर के लिए यह वाक्य समझ नहीं आया। वह द्वार के पास बैठ गया और सोचने लगा। तभी उसे फिर से वृषभ की बातें याद आईं। उसने महसूस किया कि यह द्वार केवल उसे खुलेगा, जब वह भीतर की शांति और करुणा से भरा होगा।
अर्जुन ने अपनी आँखें बंद कीं और अपने भीतर की शक्ति को महसूस किया। उसने अपने दिल और मन को एक करने की कोशिश की। धीरे-धीरे, उसे शांति और संतोष की भावना ने घेर लिया। उसने आँखें खोलीं, और देखा कि द्वार धीरे-धीरे खुल रहा था।
अर्जुन ने उस द्वार के भीतर कदम रखा और पाया कि वहाँ कोई खजाना नहीं था। बल्कि, वहाँ एक शांत और सुहावना बगीचा था, जहाँ प्रकृति की सुंदरता ने उसे घेर लिया।
तभी वृषभ फिर से प्रकट हुआ और बोला, "यह खजाना कोई सोने-चाँदी का नहीं है। यह ज्ञान और समझदारी का खजाना है। जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है धैर्य, करुणा और समझ। यही वह सच्ची संपत्ति है, जिसे लोग अक्सर भूल जाते हैं। तुमने आज वह प्राप्त किया है।"
अर्जुन ने सिर झुका कर धन्यवाद दिया और वापस गाँव की ओर लौट गया। उसने सीखा कि सच्ची सफलता केवल बाहर नहीं, बल्कि भीतर की शांति और करुणा में होती है।
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