Jaadu Ka Paid Aur Tin Dost | जादुई पेड़ और तीन दोस्त | Cartoon Tales | Hindi Kahani | Cartoon Story
कहानी का शीर्षक: जादुई पेड़ और तीन दोस्त
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में तीन दोस्त रहते थे - मोहन, सुरेश और गीता। तीनों बहुत अच्छे दोस्त थे, लेकिन उनमें एक चीज़ में फर्क था। मोहन आलसी था, सुरेश बहुत जिद्दी था, और गीता मेहनती और बुद्धिमान थी।
गाँव के पास एक घना जंगल था। लोग कहते थे कि जंगल के बीचों-बीच एक जादुई पेड़ है, जो किसी भी इच्छा को पूरी कर सकता है। लेकिन उस पेड़ तक पहुँचने का रास्ता बहुत कठिन और खतरनाक था।
एक दिन, तीनों दोस्तों ने सोचा कि क्यों न उस जादुई पेड़ को खोजा जाए और अपनी इच्छाएं पूरी की जाएं। मोहन ने सोचा, "अगर मैं उस पेड़ तक पहुँच गया, तो मैं हमेशा आराम करूँगा और कभी काम नहीं करूँगा।" सुरेश ने कहा, "मैं उस पेड़ से सबसे ताकतवर इंसान बनने की इच्छा माँगूँगा, ताकि कोई मुझे हरा न सके।" गीता ने सोचा, "मैं उस पेड़ से सबके लिए खुशी और सुख माँगूँगी।"
तीनों दोस्त अपनी यात्रा पर निकल पड़े। रास्ता बहुत कठिन था। पहले दिन, वे एक बड़ी नदी के पास पहुँचे। नदी का बहाव बहुत तेज़ था। मोहन ने कहा, "यहाँ रुक जाओ, हमें यहाँ से आगे नहीं जाना चाहिए। यह बहुत खतरनाक है।"
लेकिन गीता ने अपने दोस्त को समझाया, "मोहन, अगर हम यहां डरकर रुक गए, तो हम कभी भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाएंगे।" सुरेश ने जिद करते हुए कहा, "हम रुकेंगे नहीं। मैं अपनी ताकत से इस नदी को पार कर लूंगा।"
सुरेश ने बिना सोचे-समझे नदी में कूद दिया, लेकिन बहाव बहुत तेज़ था। वह बहने लगा। तभी गीता ने एक लंबी रस्सी निकाली और सुरेश को खींचकर बचाया। मोहन ने देखा कि गीता की समझदारी और मेहनत से सुरेश की जान बची।
आगे चलते हुए, उन्हें एक घना जंगल मिला। जंगल में भयानक जानवर थे। मोहन डर गया और बोला, "अब और आगे नहीं जाऊंगा। यह जंगल बहुत खतरनाक है।" सुरेश ने फिर जिद्द की, "मैं सबसे ताकतवर बनना चाहता हूँ, मैं डर से पीछे नहीं हटूँगा।"
गीता ने कहा, "हमें एकजुट होकर इस मुश्किल का सामना करना चाहिए। अगर हम साथ रहें, तो कोई भी खतरा हमें हरा नहीं सकता।" उन्होंने एक योजना बनाई। गीता ने सुरेश और मोहन को कुछ छड़ी और पत्ते दिए। तीनों ने मिलकर एक सुरक्षित रास्ता बनाया और जंगल को पार किया।
कुछ घंटों बाद, वे एक विशाल पर्वत के सामने पहुँचे। पर्वत बहुत ऊँचा था, और ऊपर चढ़ना आसान नहीं था। मोहन फिर से निराश हो गया। उसने कहा, "मैं अब थक गया हूँ। मैं और नहीं चल सकता।" सुरेश ने कहा, "मैं इस पर्वत को अकेले चढ़ जाऊँगा। मुझे किसी की मदद की जरूरत नहीं।"
लेकिन जब सुरेश अकेले चढ़ने की कोशिश करने लगा, तो वह फिसलकर गिरने लगा। गीता ने फिर से मदद की। उसने कहा, "सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि धैर्य और एकजुटता से हम यह पर्वत पार कर सकते हैं।" तीनों ने एक-दूसरे का साथ दिया और धीरे-धीरे पर्वत की चोटी तक पहुँच गए।
चोटी पर पहुँचने के बाद, उन्हें जादुई पेड़ दिखाई दिया। वह पेड़ सोने से चमक रहा था, और उसकी शाखाओं पर अनमोल रत्न लटक रहे थे। तीनों दोस्त पेड़ के पास गए। पेड़ की एक शाखा नीचे झुकी और तीनों से बोली, "तुमने इस कठिन यात्रा को सफलतापूर्वक पार किया है। अब बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है?"
मोहन ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि मुझे जीवनभर आराम मिले, और मुझे कभी मेहनत न करनी पड़े।" सुरेश ने कहा, "मैं सबसे ताकतवर इंसान बनना चाहता हूँ, ताकि कोई मुझे हरा न सके।" गीता ने पेड़ से विनम्रता से कहा, "मैं चाहती हूँ कि मेरे दोस्तों को समझ आए कि असली खुशी और ताकत एक-दूसरे की मदद और मेहनत में है।"
पेड़ कुछ देर चुप रहा और फिर मुस्कराया। अचानक, मोहन और सुरेश के चेहरे पर चमक आई। उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हुआ। मोहन ने कहा, "मुझे समझ आ गया कि मेहनत के बिना जीवन का कोई मतलब नहीं।" सुरेश ने भी कहा, "मैं समझ गया हूँ कि ताकत से ज्यादा महत्वपूर्ण है एकजुटता और समझदारी।"
गीता की बुद्धिमानी और पेड़ की जादुई शक्ति ने तीनों दोस्तों को एक महत्वपूर्ण सीख दी। उन्होंने पेड़ को धन्यवाद दिया और खुशी-खुशी अपने गाँव लौट आए।
कहानी का नैतिक:
सच्ची ताकत मेहनत, समझदारी और एकजुटता में होती है। आलस और जिद्द से कुछ भी हासिल नहीं होता।
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