Rahasyamaya Rajkumari | Cartoon Tales | Hindi Kahani | Cartoon Story

रहस्यमयी राजकुमारी

बहुत समय पहले की बात है, एक विशाल राज्य था जिसका नाम था अमरपुर। इस राज्य में राजा विक्रम अपने न्यायप्रियता और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में सुख-समृद्धि थी, और जनता अपने राजा से अत्यधिक प्रेम करती थी। राजा की एक ही बेटी थी, जिसका नाम था राजकुमारी रत्नप्रिया। वह सुंदरता की मिसाल थी, लेकिन उससे भी अधिक वह अपनी रहस्यमयी प्रवृत्तियों के लिए जानी जाती थी। राजकुमारी का स्वभाव बहुत शांत था, लेकिन उसकी आँखों में एक अनजाना दर्द छिपा हुआ था जिसे कोई समझ नहीं पाता था।

राजकुमारी रत्नप्रिया के बारे में एक बात और प्रसिद्ध थी—वह हर पूर्णिमा की रात महल से गायब हो जाती थी। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ जाती थी। राजा विक्रम ने कई बार उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह हमेशा किसी न किसी बहाने से उन्हें टाल देती।

एक दिन, राजा ने अपने सबसे विश्वसनीय सेनापति, वीर प्रताप को बुलाया। "प्रताप, मैं राजकुमारी की इन रातों में होने वाली रहस्यमयी हरकतों से चिंतित हूँ। क्या तुम इसका पता लगा सकते हो?"

प्रताप ने सिर झुकाया और बोला, "महाराज, मैं आज रात खुद इसकी तहकीकात करूँगा। आप निश्चिंत रहें।"

राजकुमारी ने गहरी सांस ली और प्रताप की ओर देखा। उसकी आंखों में अब डर और दर्द साफ दिखाई दे रहा था। "प्रताप, यह एक लंबी और कठिन कहानी है," उसने कहा। "मैं तुम्हें सबकुछ बताऊंगी, लेकिन पहले हमें यहां से सुरक्षित बाहर निकलना होगा।"

हवेली में अभी भी रहस्यमयी शक्तियों का असर था। दीवारें कंपकंपा रही थीं, और हवा में एक अजीब-सी गूंज गूँज रही थी। राजकुमारी ने प्रताप का हाथ पकड़ा और उसे तेजी से हवेली के बाहर खींच लिया। बाहर निकलते ही हवेली अपने आप धराशायी हो गई, जैसे किसी ने उसे जलाकर राख कर दिया हो।

भूतकाल का रहस्य

राजकुमारी ने गहरी सांस ली और कहा, "अब तुम्हें सच बताने का समय आ गया है। यह साधु कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। यह मेरी माँ के अभिशाप से जुड़ा हुआ है। मेरी माँ, रानी विद्यावती, एक शक्तिशाली देवी की उपासिका थीं। लेकिन उन्होंने एक गंभीर भूल की थी। उन्होंने अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर किसी निर्दोष व्यक्ति पर कष्ट डाला था, और इस कारण उन्हें अभिशाप मिला कि उनकी संतति, यानी मैं, कभी पूर्ण रूप से मुक्त नहीं हो पाऊंगी।"

प्रताप की आंखें हैरान थीं। "लेकिन ये सब... ये साधु... और यह हवन कुंड?"

राजकुमारी ने आगे बताया, "इस साधु का नाम कालभैरव था। वह माँ का गुरु था, लेकिन जब माँ ने अपने अभिशाप का उल्लंघन करने की कोशिश की, तो उन्होंने उसे धोखा दिया। वह मुझे भी उसी जाल में फंसा रहा था। हर पूर्णिमा की रात मुझे उसकी शक्ति के सामने झुकना पड़ता था ताकि मैं राज्य पर कोई संकट न लाऊं। लेकिन अब समय आ गया है कि इस अभिशाप को समाप्त किया जाए।"

साधु का रहस्य और अंतिम संघर्ष

प्रताप ने राजकुमारी की बात को ध्यान से सुना। उसकी वीरता ने उसे तुरंत निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया। "हम इस अभिशाप को समाप्त करेंगे, राजकुमारी। चाहे जो भी हो।"

राजकुमारी ने सिर हिलाया। "परंतु यह इतना आसान नहीं होगा। साधु कालभैरव की शक्ति केवल उसकी शारीरिक उपस्थिति से नहीं जुड़ी है। वह एक रहस्यमयी वस्त्र धारण करता है, जो उसे अजेय बनाता है। हमें उस वस्त्र को नष्ट करना होगा।"

प्रताप ने तुरंत अपने तलवार की ओर इशारा किया। "यह तलवार मेरे पूर्वजों की है। इसे धर्म और न्याय की रक्षा के लिए बनाया गया है। मैं उस वस्त्र को नष्ट करने के लिए इसे उपयोग करूंगा।"

राजकुमारी ने प्रताप को एक गुफा का रास्ता दिखाया, जो उस साधु की छिपी हुई असली शक्ति का स्त्रोत थी। गुफा गहरी और अंधेरी थी। अंदर जाने पर, उन्होंने देखा कि वहाँ एक विशाल मूर्ति थी, जिसके चारों ओर मंत्रों से भरा एक वस्त्र लटक रहा था। यह वही वस्त्र था जिसे साधु धारण करता था।

अचानक, साधु कालभैरव प्रकट हुआ। उसकी आंखों में क्रोध और शक्ति की चमक थी। "तुम दोनों मुझे रोकने का साहस कर रहे हो? मैं अजेय हूँ!" उसने गुस्से में गर्जना की।

लेकिन प्रताप पीछे हटने वाला नहीं था। उसने अपनी तलवार को ऊंचा उठाया और साधु की ओर बढ़ा। साधु ने अपनी रहस्यमयी शक्तियों से प्रताप पर वार किया, लेकिन प्रताप ने अपनी तलवार से उन हमलों को काट दिया। जैसे ही तलवार ने वस्त्र को छुआ, वह आग की तरह जलने लगा।

साधु चिल्लाया, "यह असंभव है! यह वस्त्र देवताओं का है!"

प्रताप ने जोर से वार किया, और वस्त्र जलकर राख हो गया। उसी क्षण साधु भी गायब हो गया, जैसे वह केवल उस वस्त्र की शक्ति से जीवित था।

अभिशाप की समाप्ति और एक नई शुरुआत

जब साधु गायब हो गया, तो हवाओं में शांति छा गई। राजकुमारी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, जैसे एक बड़ा बोझ उसके सिर से हट गया हो। "अब यह अभिशाप समाप्त हो गया है," उसने कहा। "माँ की आत्मा अब शांति से जा सकेगी।"

प्रताप ने सिर झुकाया और कहा, "राजकुमारी, अब आपके जीवन में कोई बाधा नहीं रहेगी। आप स्वतंत्र हैं।"

राजकुमारी ने उसकी ओर देखा और कहा, "यह सब आपकी वीरता और साहस के कारण संभव हो पाया है, प्रताप। आप मेरे राज्य के सच्चे रक्षक हैं।"

राजा विक्रम को जब यह सब पता चला तो वह बेहद खुश हुए और उन्होंने प्रताप को महल का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया। राजकुमारी रत्नप्रिया अब एक नई आशा के साथ अपने जीवन की ओर बढ़ी।

रहस्य की अंतिम कड़ी

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। एक रात, जब राजकुमारी अपने कक्ष में आराम कर रही थी, तो उसे एक हल्की गूंज सुनाई दी। उसने अपनी खिड़की से बाहर देखा, तो उसे वही पुरानी हवेली दिखाई दी, जो अब जलकर राख हो चुकी थी। अचानक हवेली की जगह एक सुंदर मंदिर बन चुका था, जिसकी सीढ़ियों पर एक रहस्यमयी छवि दिखाई दी। वह साधु की नहीं, बल्कि देवी की छवि थी।

वह छवि बोल उठी, "रत्नप्रिया, अब तुम मुक्त हो, लेकिन ध्यान रखना कि शक्ति का दुरुपयोग कभी मत करना। तुम्हारी परीक्षा अभी समाप्त नहीं हुई है।"

यह सुनकर राजकुमारी के चेहरे पर शांति की एक नई लहर दौड़ी, लेकिन साथ ही एक अनजाना डर भी। क्या भविष्य में फिर कोई और रहस्य उसका इंतजार कर रहा है?

कहानी यहीं समाप्त होती है, लेकिन यह संदेश देती है कि शक्ति का दुरुपयोग कभी नहीं करना चाहिए, और जीवन में सच्चाई और न्याय का मार्ग ही सबसे महत्वपूर्ण होता है।


संदेश: जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना करना चाहिए, लेकिन कभी भी शक्ति और अधिकार का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। सच्चाई, धैर्य, और साहस ही हमें सच्ची शांति की ओर ले जाते हैं।

No comments

Powered by Blogger.