Shrapit Bhediya Ki Khaufnak Raat | श्रापित भेड़िया की खौफनाक रात | Hindi Horror Story | Part 2

भयानक भेड़िया: श्रापित इंसान की रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी

एपिसोड 2: अंधेरे का शिकारी

रात का सन्नाटा पूरे गाँव पर छाया हुआ था। पूर्णिमा की रात फिर से आने वाली थी, और गाँववालों के दिलों में एक बार फिर से भय ने अपनी जगह बना ली थी। पिछले हमले के बाद गाँव में सन्नाटा और चिंता का माहौल था। गाँव के बड़े-बुज़ुर्ग अपने-अपने घरों में बैठे उस श्रापित भेड़िए की चर्चा कर रहे थे जिसने कई लोगों की जान ले ली थी।

विक्रम का संघर्ष

विक्रम अपने छोटे से कच्चे घर के अंदर अकेला बैठा था। उसकी आँखों में डर और पछतावा दोनों थे। वह जानता था कि पिछले पूर्णिमा की रात उसने जो किया, वह उस पर भारी पड़ने वाला है। उसका शरीर भेड़िए के रूप में तब्दील हो चुका था, और उसकी यादों में वो खून से सने हाथ अभी भी ताज़ा थे। वह अपने हाथों को देख रहा था, जैसे उन पर से खून को मिटाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन यह खून केवल उसके हाथों पर नहीं, उसकी आत्मा पर लगा हुआ था।

विक्रम: "मैं क्या कर रहा हूँ? क्या मैं सच में यह सब कर रहा हूँ?"

वह अचानक अपनी माँ की तस्वीर के पास खड़ा हो जाता है, उसकी आँखों में आँसू होते हैं। "माँ, मुझे माफ़ कर दो। मैं अब इस श्राप से लड़ नहीं सकता।"

गाँव में डर का माहौल

गाँव में सभी लोग इस बात से चिंतित थे कि फिर से कोई हमला हो सकता है। बड़े-बुज़ुर्गों ने गाँव की चौकीदारी बढ़ा दी थी, लेकिन भेड़िए का डर अब भी उनके दिलों में था। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने देखा था कि विक्रम अलग-अलग व्यवहार कर रहा था। वह दिन में अक्सर अकेला रहता और रात होते ही गायब हो जाता था। इस बार, गाँववालों ने यह निश्चय किया था कि वे इस भयानक भेड़िए को पकड़ने की कोशिश करेंगे।

गाँव के कुछ युवक रात को गाँव के चारों ओर गश्त लगाते हुए भेड़िए की तलाश कर रहे थे। उन्हें हर परछाई में भेड़िए का अक्स दिखाई देता था। सभी की आँखों में भय था, लेकिन किसी के पास कोई ठोस योजना नहीं थी। रात का अंधेरा और जंगल की सरसराहट उनके डर को और बढ़ा रही थी।

विक्रम की वापसी

रात को जब चाँद अपनी पूर्णिमा की रोशनी में चमकने लगा, विक्रम को फिर से वही अजीब सा एहसास होने लगा। उसके शरीर में हल्की हलचल शुरू हो चुकी थी। उसके हाथ कांपने लगे, उसके नाखून बढ़ने लगे, और उसकी आँखों की पुतलियाँ धीरे-धीरे लाल होने लगीं। उसे एहसास हो रहा था कि श्राप फिर से असर कर रहा है।

विक्रम (अंदरूनी संघर्ष): "नहीं, मैं इस बार अपने आप को रोक लूंगा। मुझे किसी को मारना नहीं है।"

वह खुद को रोकने की कोशिश करता है। उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया, लेकिन अंदर से उसकी जानवरों वाली आवाजें बाहर निकलने लगीं। उसकी शरीर की त्वचा पर बाल उगने लगे, उसके दाँत लंबे और नुकीले हो गए, और उसकी साँसें तेज़ हो गईं। विक्रम का चेहरा धीरे-धीरे भेड़िए के रूप में बदलने लगा।

विक्रम (चिल्लाते हुए): "नहीं! मुझे इस श्राप से बचाओ!"

लेकिन उसकी आवाजें धीरे-धीरे भेड़िए की डरावनी दहाड़ में बदल गईं।

शिकार की शुरुआत

गाँव में विक्रम के भेड़िए बनने की आहट फैल चुकी थी। सभी लोग अपने घरों में दुबक गए थे। चौकीदारों ने अपनी मशालें जला ली थीं और हर आवाज़ पर चौकन्ने हो गए थे।

अचानक गाँव के पश्चिमी हिस्से से एक चीख सुनाई दी। एक युवक, जिसका नाम सागर था, अंधेरे में गायब हो गया था। उसकी चीख गाँव भर में गूंज रही थी। चौकीदारों ने मशालें लेकर उस दिशा में दौड़ लगाई, लेकिन वहाँ सागर की जगह सिर्फ खून के धब्बे और पंजों के निशान थे।

चौकीदार 1: "यह... यह पंजे भेड़िए के हैं!"

वहां मौजूद सभी लोग डर के मारे कांपने लगे। वे समझ चुके थे कि भेड़िया फिर से शिकार पर निकल पड़ा है। वे अब भी सागर के शरीर को ढूंढने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें सिर्फ उसकी फटी हुई शर्ट मिली।

अजीब घटनाएं

इस बार भेड़िया पहले की तरह नहीं था। उसका रूप अब और भी भयानक और शक्तिशाली हो चुका था। वह गाँव के अलग-अलग हिस्सों में अपनी मौजूदगी दिखा रहा था, लेकिन किसी को नहीं पकड़ रहा था। जैसे वह किसी बड़े शिकार की तलाश कर रहा हो।

विक्रम के अंदर छिपे मानव और भेड़िए के बीच एक अजीब संघर्ष चल रहा था। विक्रम का मानवीय रूप चाहता था कि वह किसी को नुकसान न पहुँचाए, लेकिन भेड़िया उस पर हावी हो चुका था।

वह अंधेरे जंगल की ओर भागा, जहाँ उसने एक झाड़ी के पीछे छिपे हुए छोटे बच्चे को देखा। उस बच्चे का नाम मोहित था। उसकी मासूम आँखों में डर झलक रहा था, लेकिन वह भाग नहीं पाया। भेड़िया उसकी ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगा।

रहस्यमयी मुलाकात

उसी वक्त, जंगल के बीच से एक रहस्यमयी आवाज गूँजने लगी। वह आवाज वही थी जिसे विक्रम ने अपनी पहली मुलाकात में सुना था—वह साधु की आवाज।

साधु: "विक्रम! तुम्हें याद रखना होगा कि हर शाप का अंत होता है। लेकिन उससे पहले तुम्हें अपने भीतर की बुराई को हराना होगा।"

भेड़िए के रूप में विक्रम उस आवाज की ओर देखने लगा। साधु का चेहरा धुंध में छिपा हुआ था, लेकिन उसकी आँखें चमक रही थीं।

विक्रम (भेड़िए की आवाज में): "मैं... मैं... खुद को रोक नहीं सकता!"

साधु: "यह शाप तब तक बना रहेगा जब तक तुम अपने अंदर की मानवीयता को पहचान नहीं लेते। लेकिन तुम अभी भी इस बच्चे की जान बचा सकते हो।"

विक्रम की आँखों में एक पल के लिए मानवीयता लौट आई। वह कांपने लगा, लेकिन जैसे ही उसने बच्चे की ओर देखा, उसकी भेड़िए की प्रवृत्ति फिर से जाग उठी। उसने बच्चे की ओर दहाड़ते हुए कदम बढ़ाया।

भयानक रहस्य

मोहित की आँखों में डर था, और वह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मौत का समय आ गया है। ठीक उसी वक्त, भेड़िया उसके करीब पहुँचने ही वाला था, जब अचानक एक चमकदार रोशनी जंगल में फैली। विक्रम चौंक कर पीछे हट गया।

यह एक रहस्यमयी महिला थी, जिसने भेड़िए को रोक दिया था। उसके हाथों में एक तिलस्मी डंडा था, जो चमक रहा था। वह महिला कौन थी? उसका विक्रम से क्या संबंध था? और क्या वह विक्रम को इस श्राप से मुक्त कर पाएगी?

महिला (धीरे से): "तुम्हारा संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है, विक्रम। अगली पूर्णिमा से पहले तुम्हें इस श्राप का रहस्य समझना होगा।"

भेड़िया अपनी जगह पर रुक गया, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी और गुस्सा दिखाई देने लगा। महिला की रहस्यमयी उपस्थिति ने उसे चौंका दिया था।

सस्पेंसफुल अंत

यह रहस्यमयी महिला कौन है? क्या वह विक्रम को इस श्राप से मुक्त कर पाएगी? और मोहित की जान बच पाएगी या नहीं? अगले एपिसोड में यह सब जानने के लिए तैयार रहें, जहाँ इस कहानी में और भी रहस्य और भयानक घटनाएँ आपका इंतजार कर रही हैं।


एपिसोड के अंत में सस्पेंस:

महिला की रहस्यमयी बातें, विक्रम के भेड़िए रूप का अजीब संघर्ष, और मोहित की अनिश्चित स्थिति दर्शकों के मन में एक गहरा सस्पेंस पैदा करेंगे, जिससे वे अगले एपिसोड को देखने के लिए बेहद उत्सुक रहेंगे।

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